हे मेरे देश के नेताओं दया करों मेरी मां पर, इसे और कितने दंश दोगे। क्या तुम नहीं जानते कि मां की कोख से जन्म लेने वाला भाई होता है तो फिर क्यों बांटते हो हिन्दू, मुसलमान, सिख, इसाई में, माना तुम वह भंवरे हो जो इन फूलों को चूसते हो लेकिन क्या तुम मधुमंखी नहीं बन सकते ताकि शहद बन जाए। माना लोकसभा के चुनाव है लेकिन क्या लोक को तुम वह श्लोक नहीं सुना सकते जो मां भारती के लिए वरदान बने। धर्म, मजहब और जाति नहीं है धर्म हमारा, क्योंकि वतन की करंे रक्षा यही है पहला धर्म हमारा।
नरेन्द्र शर्मा
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बुधवार, 23 अप्रैल 2014
परमात्मा की कृति
जल, जंगल, जमीन, जीव और जीवन अनमोल है जिसकी कोई जाति नहीं बल्कि यह परमात्मा की वह कृति है। हालांकि संक्रमण के दौर से गुजर रही राजनीति ने जीव में जातिवादी बीजारोपण कर इसे पुष्पित व फल्लवित करने में कोई कसर नही छोड़ी लेकिन हमें इस चुनौती को स्वीकार करना होगा। भारत की विवधता तो हमारा श्रृंगार है लेकिन इसमें विभेद करने का प्रयास किया जा रहा है इसलिए सावधान होकर हमें अपनी संस्कृति को बचना ही होगा। यही वर्तमान की आवश्यकता है।
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