जल, जंगल, जमीन, जीव और जीवन अनमोल है जिसकी कोई जाति नहीं बल्कि यह परमात्मा की वह कृति है। हालांकि संक्रमण के दौर से गुजर रही राजनीति ने जीव में जातिवादी बीजारोपण कर इसे पुष्पित व फल्लवित करने में कोई कसर नही छोड़ी लेकिन हमें इस चुनौती को स्वीकार करना होगा। भारत की विवधता तो हमारा श्रृंगार है लेकिन इसमें विभेद करने का प्रयास किया जा रहा है इसलिए सावधान होकर हमें अपनी संस्कृति को बचना ही होगा। यही वर्तमान की आवश्यकता है।
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