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सुस्‍वागतम

शनिवार, 24 मार्च 2012

** चूरू के उभरते युवा साहित्यकार

साहित्य संस्कारो वाले चूरू अंचल के लिए यह गर्व की बात है कि नई पीढ़ी भी साहित्य संसार में रच बस रही हैं । साहित्य सृजन कि ओर कदम रखते युवाओं को देख आपकों भी यह संतोष तो होता ही होगा कि आने वाले कल में थली में साहित्य सृजन की नांव इस रेत के समुन्द्र में सरपट चलेगी । मैं चूरू के साधनारत संतों कि प्रेरणा से साहित्य सृजनधर्मी युवा साहित्यकारों को बधाई देता हूँ । आशा रखता हूँ कि आने वाला कल आपकी मुठ्ठी में होगा । युवा साहित्यकारों में तारानगर चूरू में श्री दुलाराम सहारण साहित्य कि पताका फहरा रहे हैं तो सुजानगढ़ में श्री घनश्याम नाथ साहित्य सृजन में निरंतर जुटे हुए हैं कुमार अजय , विश्वनाथ भाटी , किशोर निर्वान , देवकरण जोशी , परमेश्वर प्रजापत , अवकाश सैनी , कमल शर्मा, उम्मेद गोठवाल , उम्मेद धानिया, स्नेहलता शर्मा, इन्द्रासिंह सहित अनेक युवा हैं जो साहित्य सृजन के माध्यम से युवा पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहें हैं ।

श्रीनिवास एक व्यक्तित्व एवं कृतित्व

श्रीनिवास एक व्यक्तित्व एवं कृतित्व

थली अंचल का वह लाडला श्रीनिवास आज हमारे बीच में नहीं है , लेकिन मेरे इस मित्र ने अपने छोटे से जीवन में आने वाली युवा पीढ़ी के लिए एक ऐसी मिशाल कायम क़ि की उससे उसकी तरह कर्म पथ पर चलने वाला किशोर देश व समाज का चितचोर बन सकता है । चूरू जिले की राजगढ़ के छोटे से गांव मिठी रेडूवाली में जन्मे श्रीनिवास आज मेरे साथ नहीं है लेकिन जब से लेकर आज तक एक भी दिन ऐसा नहीं गया क़ि वह मेरे मानस पटल पर नहीं रहा हो । नवयुवक मंडल संस्थान मिठी रेडूवाली के माध्यम से परिवार , देश व समाज की दशा व दिशा को निरंतर एक लय प्रदान करने लिए चिन्तन करने वाला श्रीनिवास शायद ही मेरे मन मंदिर से प्रस्थान करेगा । सामाजिक सरोकार के अग्रदूत निवास कहाँ भी रहा हो उसका वही स्थान कर्म भूमि बन गया । सात मिनट में सवा लाख पौधे लगने की कल्पना ही नहीं बल्कि उसे साकार रूप देना कोई मामूली काम नहीं था लिकिन धुन के पक्के निवास ने वह कर दिखाया जो मुश्किल था , असम्भव को सम्भव करना कोई सीखे तो श्रीनिवास से सीखे , ' श्रीनिवास एक व्यक्तित्व एवं कृतित्व ' पुस्तक लिखने का प्रयास कर रहा हूँ , श्रीनिवास एक व्यक्तित्व एवं कृतित्व ' से सम्बन्धित कोई भी अनछुए पहलू यदि आप के पास है तो आप मेरे पते पर पहुंचा सकते हैं ।

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

नेता है की मानने को तैयार नहीं है

 पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में रहे मतदाताओं के मिजाज को लेकर जहाँ मिडिया में समीक्षाओं का क्रम जरी है वहीं राष्ट्रिय दल   कांग्रेस व  भाजपा  के नेता  भी मंथन कर रहे हमारी है लेकिन नेताओं के पास न पानी, दूध है और न ही दही है फिर भी दोनों ही दल हार से सबक लेने को तैयार नहीं है।   कांग्रेस व  भाजपा के नेता एक दुसरे की नीतियों में खामिया खोज रहे है। जबकि समय है ईमानदारी से अपनी कमियों को स्वीकार कर देश व जनता के दर्द को समझने का लेकिन दोनों ही पार्टियों के नेता है की मानने को तैयार नहीं है। क्षेत्रवाद , जातिवाद, परिवारवाद तथा साम्प्रदायिक के नाम को भारत की आत्मा को चोट दर चोट पहुंचाने वाले नेताओं एक बार फिर भारत को खंड खंड करने की मनो कमर कस ली है। भले ही भारत का सामाजिक ताना बना इतना मजबूत है लेकिन इसमें भी नेताओं की स्वार्थ व व्यक्तिवादी राजनीति ने भारतवासियों को दिग्भ्रमित करने को पूरा प्रयास किया है। क्या  यही हमारी  विडम्बना  है।

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