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सुस्‍वागतम

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

नेता है की मानने को तैयार नहीं है

 पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में रहे मतदाताओं के मिजाज को लेकर जहाँ मिडिया में समीक्षाओं का क्रम जरी है वहीं राष्ट्रिय दल   कांग्रेस व  भाजपा  के नेता  भी मंथन कर रहे हमारी है लेकिन नेताओं के पास न पानी, दूध है और न ही दही है फिर भी दोनों ही दल हार से सबक लेने को तैयार नहीं है।   कांग्रेस व  भाजपा के नेता एक दुसरे की नीतियों में खामिया खोज रहे है। जबकि समय है ईमानदारी से अपनी कमियों को स्वीकार कर देश व जनता के दर्द को समझने का लेकिन दोनों ही पार्टियों के नेता है की मानने को तैयार नहीं है। क्षेत्रवाद , जातिवाद, परिवारवाद तथा साम्प्रदायिक के नाम को भारत की आत्मा को चोट दर चोट पहुंचाने वाले नेताओं एक बार फिर भारत को खंड खंड करने की मनो कमर कस ली है। भले ही भारत का सामाजिक ताना बना इतना मजबूत है लेकिन इसमें भी नेताओं की स्वार्थ व व्यक्तिवादी राजनीति ने भारतवासियों को दिग्भ्रमित करने को पूरा प्रयास किया है। क्या  यही हमारी  विडम्बना  है।

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