पत्रकारिता एक मिशन है लेकिन अब पत्रकारिता व्यापार में बदलती जा रही है। हालाँकि सभी क्षेत्र में बदलाव आया है। फिर भी पत्रकारिता से देश काफी उम्मीद रखता है। इसलिए पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने वालों को चाहिए की वे इस पर आत्म मंथन करें। माना अर्थ युग में पत्रकारिता करना एक चुनौती है लेकिन पैसा ही सबकुछ नहीं है। सच यह भी है आज ऊँचे मीडिया संस्थानों में पत्रकार स्वतंत्र नहीं है। पत्रकार की हेसियत एक नौकर की है। इसलिए अपने परिवार का पेट पालने के खातिर वह मजबूरी में बहुत सी बातों की अनदेखी करता है लेकिन यह मजबूरी आने वाले कल पर भारी पर सकती है। संस्थानों की नीति के साथ कदमताल करता पत्रकार अपने उस दाइत्व से भटक रहा है जिसके लिए वह इस क्षेत्र में आया था । सीधे शब्दों में बात नहीं कर एक संकेत दे रहा हूँ मेरे पत्रकार साथी इस पर आत्मावलोकन करें।
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