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सुस्‍वागतम

गुरुवार, 7 जून 2012

शब्दों का बाजारीकरण

शब्दों का बाजारीकरण
अर्थ युग में विकास के साथ साथ जहां उन्नति का एक मार्केट बन गया वही शब्दों का भी बाजारीकरण हो गया, क्या आज आपको नहीं लगता की शब्दों का बाजार बड़ा हो गया तभी तो विभिन्न भाषाओँ के शब्दों का परस्पर इस तरह मिलन हो गया की इसे आम ने शायद मान्यता भी देदी| हालाँकि शब्दों का बाजार बड़ा है और हर कालखंड में इसकी व्याख्या और वैभव भी बढ़ा है जो कोई गलत भी नही है लेकिन मूल शब्दों की तोड़मरोड़ के बाजार ने शब्दों का नव उत्पाद कर ग्राहकों को आकर्षित करने की मानसिकता आने वाले कल के लिए घातक हो सकती है | जैसे इण्डिया .... आज हमारे स्वदेशी विदेशों में भारत को इण्डिया बना दिया है वह भी केवल व्यापार के चलते ...... ?

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